चलो हम भी कुछ कर जाएँगें
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
पहाड़ों की ख़ुशहाली को फिर से वापस लाएँगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।।
आज बैठा था अकेला,
याद आया वो दिन ,
निकले थे घरों से,
कुछ बनेंगे एक दिन ।
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
छोड़ आया था वो गाँव पहाड़ ,
लिए कुछ सपने आँखो में,
बीत गये कयी माह ,
बस रह गया गाँव मेरी यादों में।
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
फिर आया एक ऐशा साल,
दुनिया हो रही थी बहाल,
याद आया मुझे फिर से गाँव,
जहाँ बुने थे मैंने सपनों के जाल।
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
लौटा वापस गाँव मैं अपने,
लेकर अपने अधूरे सपने ,
मानो बुला रहें थे मुझे ,
टूटी छत और जंग लगे ताले।
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
वो ककड़ी की चोरी, नौले का पानी,
झोली और भात और दादी की कहानी,
मानो भूल सा चुका था मैं
गाँव का प्यार और खेतों की हरियाली।
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
बीत गया वो दिन भी पूरा,
था जिसमें मेरा सपना अधूरा
हुआ एक नया सवेरा,
लेकर एक नयी उमंग का डेरा,
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
वो सूरज की पहली किरण,
और चिड़ियों की मधुर आवाज़,
खिलखिल करता पानी,
और शीतल पवन का आग़ाज़,
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
छोड़ दी अब वो ज़िद पुरानी,
यहीं शुरू करेंगे नयी कहानी,
फिर होगा एक नया सवेरा,
जिसे देखेगी दुनिया सारी,
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
वादा करता हुँ आज से, ना जाऊँगा कभी पहाड़ से,
चलना जहाँ से सीखा था,सपने भी वहीं सजाएँगे,
पहाड़ों की ख़ुशहाली को हम फिर से वापस लाएँगे,
उम्मीद का दीपक हम ही जलाएंगे,
चलो हम भी कुछ कर जाएँगे।
लेखक– ऋषि चौधरी
bhaut badiya kavita likhi h
जवाब देंहटाएंnice blog yr apne kafi ache se likha h
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