कर्णप्रयाग, उत्तराखंड का इतिहास , पौराणिक मान्यताये एवम् आकर्षण स्थल !
HISTORY , MYTHOLOGICAL BELIEFS AND ATTRACTIONS OF KARNAPRAYAG
नमस्कार दोस्तों आज हम आपको वाइब्रेंट उत्तराखंड देवभूमि इस ब्लॉग पोस्ट में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल “कर्णप्रयाग” के बारे में जानकारी देने वाले है |
कर्णप्रयाग का इतिहास
कर्णप्रयाग उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल के चमोली जिले का एक कस्बा है। कर्णप्रयाग उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है | कर्णप्रयाग पंच प्रयाग में से तीसरे प्रयाग है तथा यह अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर स्थित है। अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम के पश्चिम की ओर शिलाखंड के रुप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। संभवतः कर्णप्रयाग धार्मिक स्थल का नाम पांडवों में सबसे बड़े भाई “कर्ण” की दानवीरता, उदारता और सूर्यपुत्र कर्ण के तेज की वजह से पड़ा हो ।
वर्ष 1803 को बिरेही बाँध के टूटने की वजह से कर्णप्रयाग में भारी नुकसान हुआ | उस समय इस स्थान में प्राचीन “उमा देवी मंदिर” का भी नुकसान हुआ था |
कर्णप्रयाग की पौराणिक मान्यताये
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कर्ण ने उमा देवी की शरण में रहकर अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम स्थल में भगवान सूर्य की कठोर तपस्या करी थी | कठोर तपस्या देख भगवान शिव अति प्रसन्न हुए थे | मान्यताओं के अनुसार इस संगम स्थान पर स्नान के बाद दान करना अत्यंत पूर्णकारी माना जाता है |
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान में भगवान कृष्ण ने इसी स्थान पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था | इसलिए इस स्थान पर पितरो को तर्पण देना भी महत्वपूर्ण माना जाता है |
कर्णप्रयाग के आकर्षण स्थल
“कर्ण मंदिर” यह मंदिर अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम के बायें किनारे अवस्थित है जो कर्ण के नाम पर ही है। पुराने मंदिर का हाल ही जीर्णोद्धार हुआ है तथा मानवाकृति से भी बड़े आकार की कर्ण एवं भगवान कृष्ण की प्रतिमाएं यहां स्थापिक है। मंदिर के अन्दर छोटे मंदिर भी स्थित है जो राम , सीता एवम् लक्षमण, भूमिया देवता , भगवान शिव एवम् माँ पार्वती को समर्पित है |
उमा मंदिर - उमा मंदिर की स्थापना 8वी सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा हुई | वर्ष 1803 को बिरेही बाँध के टूटने की वजह से कर्णप्रयाग में भारी नुकसान हुआ तब उस समय प्राचीन “उमा देवी मंदिर” का भी भारी नुकसान हुआ था | कहा जाता है कि संकसेरा के एक खेत में उमा का जन्म हुआ और यह भी कहा जाता है कि एक डिमरी ब्राह्मण को देवी ने स्वप्न में आकर अलकनंदा एवम् पिंडर नदियों के संगम पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया था |
निकटवर्ती आकर्षण
चाँदपुर गढ़ी - पंवार वंश के सबसे अधिक शक्तिशाली ने चांदपुर गढ़ी (किला) से शासन किया।
आदि बद्री - चांदपुर गढ़ी से 3 किलोमीटर आगे जाने पर आपके सम्मुख अचानक प्राचीन मंदिर का एक समूह आता है जो सड़क की दांयी ओर स्थित है। किंबदंती है कि इन मंदिरों का निर्माण स्वर्गारोहिणी पथ पर उत्तराखंड आये पांडवों द्वारा किया गया।
नंज राज जाट/नौटी - नौटी गांव जहां से नंद राज जाट यात्रा आरंभ होती है इसके समीप है। गढ़वाल के राजपरिवारों के राजगुरू नौटियालों का मूल घर नौटी का छोटा गांव कठिन नंद राज जाट यात्रा के लिये प्रसिद्ध है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है तथा कुंभ मेला की तरह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
लेखक - वाइब्रेंट उत्तराखंड टीम