हरेला - कुमाऊँ का लोक पर्व || Harela – Folk Festival of Kumaon

 

हरेला - कुमाऊँ का लोक पर्व || Harela – Folk Festival of Kumaon

 


नमस्कार दोस्तों !! आज हम आपको वाइब्रेंट उत्तराखंड देवभूमि इस ब्लॉग पोस्ट में उत्तराखंड के बेहद खूबसूरत त्यौहारहरेलाके बारे में जानकारी देने वाले है | हरेला पर्व मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में मनाया जाता है । यह पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। आम तौर पर हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है और हरियाली या हरेला शब्द पर्यावरण के काफी करीब है। हरेले के दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ ही पौधारोपण भी किया जाता है।

 


हरेला पर्व हमारी संस्कृति को उजागर करते हैं , पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है और पहाड़ की परंपराओं को भी समेटे रखे हुए है| बता दे हरेला पर्व वर्ष में तीन बार आता है-

चैत्र मास में हरेला - इसमा हरेला प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है। चैत्र मास का हरेला गर्मी के आने का सूचक है।

श्रावण मास में हरेला - इसमा हरेला सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन में काटा जाता है। श्रावण मास में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा श्रावण मास में मनाये जाने वाला हरेला पर्व का अधिक कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है, इसलिए श्रावण मास के हरेले को कही कही हर-काली के नाम से भी जाना जाता है।

आश्विन मास में हरेला - इसमा हरेला आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है। आश्विन मास का हरेला भी मौसम के बदलाव के सूचक है। आश्विन मास का हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है।

 

बड़े- बुजुर्गो देते है सभी को इस प्रकार  लम्बी उर्म का आशीर्वाद || Blessings by Elders for prosperity


 

जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,

दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,

हिमाल में ह्यूं छन तक,

गंग ज्यू में पांणि छन तक,

यो दिन और यो मास भेटनैं रये,

अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,

स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो।

धरती जस चाकव है जया स्यावै जस बुद्धि,

सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,

जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जया...”

 

 


हरेला त्यौहार घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। इस पर्व को ना सिर्फ त्योहार के रूप में मनाया जाता है, बल्कि किसानों से भी जुड़ा है। 10 दिन की पूजा पाठ के बाद हरेले को विधि विधान से पूजा जाता है जिसके बाद उसे काटा जाता है। हरेला पर्व से नौ अथवा दस दिन पूर्व पत्तों से बने दोने या रिंगाल की  टोकरियों में हरेला बोया जाता है। इन पात्रों में उपलब्धतानुसार पांच, सात अथवा नौ प्रकार के धान्य यथा-धान, मक्का, तिल, उरद, गहत, भट्ट,जौं सरसों के बीजों को बोया जाता है। घर के देवस्थान में रखकर इन टोकरियां को रोज सुबह पूजा करते समय जल के छींटां से सींचा जाता है। दो-तीन दिनों में ये बीज अंकुरित होकर हरेले तक सात-आठ इंच लम्बे तृण का आकार पा लेते हैं। हरेला पर्व की पूर्व सन्ध्या पर इन तृणों की लकड़ी की पतली टहनी से गुड़ाई करने के बाद इनका विधिवत पूजन किया जाता है।

 


हरेले पर्व में  सबसे पहले भगवान को चढ़ाने के साथ बड़े बुजुर्ग अपने बेटे नाती-पोतों को हरेला लगा कर और उनकी लम्बी उर्म की कामना करते हैं और बच्चों को आशीर्वाद करते हैं। पहाड़ में त्योहारों का आगाज करने वाले इस पर्व पर  बहुत तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं तो रिस्तेदार-नातेदारों को हरेला डाक से भेजने की भी परम्परा है। हरेला पर्व ऐसा पर्व है जो मेलों का आगाज भी करता है तो इसका इंतजार भी साल भर रहता है।

 


 

हरेला पर्व की मान्यता  यह भी है कि श्रावण का मास भगवान शिव का बहुत  प्रिय मास है भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह दिवस को ही उत्तराखंड के लोग हरेला पर्व के रूप में मनाते हैं। उत्तराखण्ड को देव भुमि से इसलिए जाना जाता है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व बताया गया है। हरेला का पर्व  चाहें परिवार के सदस्य कहीं भी रहते हैं। यह त्योहार और पूरे परिवार को हमेशा एक  कर रखता है।

 

वाइब्रेंट उत्तराखंड देवभूमि टीम

Vibrant Uttarakhand

वाइब्रेंट उत्तराखंड "भगवान की भूमि" संस्कृति, मूल्यों, प्रेम, भक्ति, विरासत, अनुष्ठानों, जड़ों, विविधता को प्रदर्शित करने के बारे में है, जो देवभूमि उत्तराखंड को एकजुट करती है। हम "देवभूमि उत्तराखंड" से जुड़े मुख्य मुद्दों को भी दिखाने की कोशिश करेंगे और समय-समय पर व्यक्तिगत अनुभवों को भी पोस्ट करेंगे, जो उत्तराखंड पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हमारे पास उत्तराखंड में थे। साथ ही इस ब्लॉग का उद्देश्य नवोन्मेषी विचारों के युवाओं को बताना है जो उन्हें अपने भविष्य और अपने स्वयं के स्थानों पर अपना कैरियर बनाने में मदद करेंगे।

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