पाताल भुवनेश्वर (Patal Bhuvaneshwar)
पाताल भुवनेश्वर : रहस्यों से भरी एक पवित्र गुफा
पाताल भुवनेश्वर :यहां स्थित है श्रीगणेश का मस्तक, ब्रह्मकमल से गिरती हैं दिव्य बूंदें
भारत की पवित्र धरती पर ऐसे कई स्थान हैं जो अपने प्राकृतिक सुंदरता पौराणिक इतिहास तथा हिंदू आस्था को संजोए हुए हैं और इनमे से एक स्थल पाताल भुवनेश्वर है। पाताल भुवनेश्वर गुफा पिथौरागढ़ जिले में स्थित गंगोलीहाट तहसील के मुख्यालय से 16 किमी की दूरी पर स्थित है और पिथौरागढ़ जनपद उत्तराखंड राज्य का प्रमुख पर्यटक केन्द्र है।
समुद्र तल से 1,350 मीटर की ऊंचाई पर पाताल भुवनेश्वर गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है। पाताल भुवनेश्वर गुफा गुफा का वर्णन स्कन्दपुराण में भी मिलता है। मान्यता अनुसार यह गुफा भगवान शिव और तैंतीस करोड़ देवी देवताओं को हिन्दू संस्कृति में समाहित करती है। पाताल भुवनेश्वर गुफा में एक संकीर्ण सुरंग जैसा उद्घाटन है, जो यहां की कई गुफाओं की ओर जाता है।
पाताल भुवनेश्वर का पौराणिक इतिहास
पाताल भुवनेश्वर रहस्यमयी गुफ़ाओं का संग्रह है जो अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। त्रेता युग में राजा ऋतुपर्णा ने इस गुफा की खोज की थी जिसके बाद उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। इंसान द्वारा इस मंदिर की खोज करने वाले राजा ऋतुपर्णा पहले व्यक्ति थे। मान्यता अनुसार अधिशेष राजा ऋतुपर्णा को इस गुफा के अंदर ले गए जहां उन्हें सभी देवी-देवता और भगवान शिव के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उसके बाद इस गुफा की चर्चा नहीं हुई लेकिन द्वापर युग में पांडवों ने इस गुफा को वापस ढूंढ लिया था और यहां रहकर भगवान शिव की पूजा की थी तथा शिवजी भगवान् के साथ चौपाड़ खेला था । आगे जाकर कलयुग में जगत गुरु शंकराचार्य का 722 ई के आसपास इस गुफा से साक्षत्कार हुआ तो उन्होंने यहाँ ताम्बे का एक शिवलिंग स्थापित किया |
पाताल भुवनेश्वर गुफा की विशेषताएँ
इस गुफ़ा में प्रवेश का एक संकरा रास्ता है जो कि क़रीब 100 फीट नीचे जाता है। नीचे एक दूसरे से जुड़ी कई गुफ़ायें है। मान्यता है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है और तेतीस करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तिया प्रतिष्ठित हैं। यही एक स्थान है जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। गुफा में दाहिनी ओर केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ की तीनों मूर्तियां (बद्रीनाथ, केदारनाथ सहित चारों धामों के प्रतीक) विद्यमान हैं। यहां पर तीनों के दर्शन एक ही दृष्टि में होते हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवानेश्वर गुफा में रखा है |पाताल भुवनेश्वर की गुफा में भगवान गणेश कटे शिलारूपी मूर्ति है जिसके ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है। यहाँ भगवान शंकर का मनोकामना कुण्ड (झोला) है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज़ पार करने पर मनोकामना पूरी होती है। एक स्थान पर यहाँ चार प्रस्तर खण्ड हैं जो चार युगों अर्थात् सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग को दर्शाते हैं।
लेखक - दीपक सिंह नेगी (उत्तराखण्ड)
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