जागेश्वर धाम मंदिर, अल्मोड़ा. उत्तराखंड


जागेश्वर धाम मंदिर, अल्मोड़ा. उत्तराखंड




उत्तराखंड की वादियों में अल्मोड़ा जिले से 36km दूर समुद्रतल से 6200 फ़ुट की ऊँचाई पर देवदार के जंगलो के बीच में स्थित, उत्तराखंड का पाँचवा धाम जागेश्वर धाम या जागेश्वर मन्दिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर , अपनी वास्तुकला के लिए काफ़ी विख्यात है। मंदिर की सुंदरता देखकर मानो ऐशा लगता है जैसे भगवान ने अपने अनमोल ख़ज़ाने से ख़ूबसूरती जी भर कर लुटाईं हैं। इसे लोग योगेश्वर के नाम से भी जानते है।






पुराणों में हाटकेश्वर और भू -राजस्व लेखा में पट्टी पारूण के नाम से जागेश्वर का वर्णन किया गया हैं।ऋगवेद मेंनागेशं दारुकावनेके नाम से इसका उल्लेख मिलता है।लोक विश्वास और लिंग पुराण के अनुसार जागेश्वर भगवान विष्णु द्वारा स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगो में से एक है।महाभारत में भी इसका वर्णन है


पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएंपूरी नहीं होती केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।





8 वी ओर 10 वी शताब्दी मे निर्मित इस मंदिर समूहों का निर्माण कत्यूरी राजाओ ने करवाया था परन्तु लोग मानते हैं कि मंदिर को पांडवों ने बनवाया था। लेकिन इतिहासकार मानते हैं कि इन्हें कत्यूरी और चंद शासकों ने बनवाया था इस स्थल के मुख्य मंदिरों में दन्देश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, कुबेर मंदिर, मिर्त्युजय मंदिर , नौ दुर्गा, नवा-गिरह मंदिर, एक पिरामिड मंदिर और सूर्य मंदिर शामिल हैं।महामंडल मंदिर,महादेव मंदिर का सबसे बड़ा मंदिर है, जबकि दन्देश्वर मंदिर जागेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर है।
केदारनाथ शैली से निर्मित ,125 मंदिरों के समूह वाला जागेश्वर धाम , जिसमें 4-5 मंदिर प्रमुख है, जिसमें विधि के अनुसार पूजा की जाती है। बड़े - बड़े पत्थरों से निर्मित जागेश्वर धाम अपने सुंदरता और एकांतता के लिए प्रसिद्ध है।






पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार मंदिर का निर्माण गुप्त साम्राज्य के काल में माना जाता है , उत्तर भारत मे गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाड़ियों के कुमाऊँ छेत्र में कत्यूरी वंश का शासन काल था , जिसकी झलक इस मंदिर पर दिखाई पड़ती है और कहा जा सकता है इस मंदिर का निर्माण गुप्त साम्राज्य में हुआ था।अपनी अनोखी कलाकृति से इन साहसी राजाओं ने देवदार के घने जंगल के मध्य बने जागेश्वर मंदिर का ही नहीं बल्कि अल्मोड़ा जिले में 400 सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया है |
इन मंदिरो की निर्माण की अवधि को 3 काल में बाटा गया है , कत्यूरीकाल , उत्तर कत्यूरीकाल, चंद्र काल ।मंदिरों का निर्माण लकड़ी और सीमेंट की जगह पत्थर की बड़ी बड़ी स्लेब से किया गया हैं दरवाजों की चौखटों पर देवी - देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत किया गया है। मंदिरो के निर्माण में ताँबे की चादरों और देवदार की लकड़ी का भी प्रयोग किया गया है।






जागेश्वर धाम भगवान सदाशिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में से 8th . का हैं।जागेश्वर में लगभग 150 छोटे-बड़े मंदिर है ।प्राचीन मान्यता के अनुसार जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली भी रही है |यहाँ नव दुर्गा ,सूर्य, हमुमान जी, कालिका, कालेश्वर प्रमुख हैं ।जागेश्वर मंदिर में हिन्दुओं के सभी बड़े देवी-देवताओं के मंदिर हैं दो मंदिर विशेष हैं पहलाशिवऔर दूसरा शिव केमहामृत्युंजय रूपका ।महामृत्युंजय में जप आदि करने से मृत्यु तुल्य कष्ट भी टल जाता है


हर वर्ष श्रावण मास में पूरे महीने जागेश्वर धाम में पर्व चलता है पूरे देश से श्रद्धालु इस धाम के दर्शन के लिए आते है |इस स्थान में कर्मकांड, जप, पार्थिव पूजन आदि चलता है यहाँ विदेशी पर्यटक भी खूब आते हैं

लेखकऋषि चौधरी

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