दिव्य पुष्प ब्रह्मकमल


दिव्य पुष्प ब्रह्मकमल




आज  हम  उत्तराखण्ड के दिव्य पुष्प ब्रह्मकमल  के बारे में निबंध लेकर आपके समक्ष उपस्थित हुए है| यह दिव्य पुष्प देवताओं का अत्यधिक प्रिय है तथा ब्रह्म कमल पुष्प  की 31 प्रजातियां बताई गईं हैं। ब्रह्म कमल पुष्प हिमालय की ऊंचाई वाले इलाके पर आधी रात्रि के समाया वर्ष मै एक बार के लिए खिलता है तथा मान्यता यह है कि इस पुष्प की महक या खुशबू रात को आती है। 



दिव्य पुष्प ब्रह्म कमल देवताओं के अत्यधिक प्रिय होने के कारण श्री केदारनाथ तथा श्री बद्रीनाथ धाम में पूजा, अर्चना के समय भगवान् को अर्पण किया जाता हैं। ग़ौरतलब हैं कि ब्रह्म कमल को श्री हरि ब्रह्म जी का कमल मानते हैं और यह पुष्प चट्टानों के बीच रुके हुए बर्फ वाले स्थानों पर ही खिलता है। और यह पुष्प सिर्फ हिमालय पर खिलता है|  यह आधी रात के बाद खिलता है।





ब्रह्म कमल है उत्तराखण्ड राज्य पुष्प


उत्तराखण्ड में ब्रह्म कमल को 2001 में राज्य पुष्प भी घोषित किया गया है तथा यह पुष्प उत्तराखण्ड के पिण्डारी जिले से लेकर चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, केदारनाथ में 3000-5000 मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। 



श्री केदारनाथ तथा श्री बद्रीनाथ धाम में किया जाता है ब्रह्मकमल अर्पण
उत्तराखण्ड में मान्यता यह भी है कि पुष्पों में ब्रह्मकमल पुष्प प्रभु देवों के देव महादेव शंकर भगवान् को सबसे अत्यधिक प्रिय है। यही कारण है कि ब्रह्मकमल पुष्प श्री केदारनाथ तथा श्री बद्रीनाथ धाम में देवों के देव महादेव तथा जगत के पालन हार श्री हरि विष्णु के चरणों में अर्पण करा जाता हैं।



ब्रह्मकमल से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
ब्रह्मकमल पुष्प का नाम श्री हरि ब्रह्म जी के नाम पर मिला है और मान्यता अनुसार यह पुष्प वर्ष में केवल जुलाई-सितंबर के बीच खिलता है और सबसे आश्चर्यजनक परन्तु सत्य बात यह है कि यह आधी रात के बाद खिलता है। तथा यह फूल मध्य रात्रि में बंद हो जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान् श्री हरि विष्णु का जन्म ब्रह्म कमल से हुआ था। ग़ौरतलब हैं इसे खिलते हुए देखना स्वप्निल सुख देता है और मान्यता यह भी है कि जो कोई इसे खिलते हुए देख ले तो उसकी कोई भी मनोकामना पूरी हो जाती है। एक बात भी है कि यह पुष्प सुबह तक मुरझा जाता है और साल में केवल सिर्फ एक बार ही रात में फूल आता है। जो केवल थोडे़ समय के लिए खिलता है।

वैसे तो देवभूमि उत्तराखंड देवी देवताओं तथा अपनी संस्कृति के लिए विश्व जगत मै जाना जाता है परंतु भी आज भी कई सारी चीज़ें जिस से लोग आज भी अनजान है। ब्रह्मकमल का अर्थ है ब्रह्म का कमल और ब्रह्मकमल की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के नाम से हुई है।

यह ब्रह्ममकल हर जगह अलग अलग नाम से पेहचाना जाता है |
उत्तराखडं में – ब्रह्मकमल
हिमाचल में – दुधाफूल
कश्मीर में – गलगल
उत्तर –  पश्चिमी भारत में- बरगनडटोगेश के नाम से जाना जाता है। 


जानकारी के अनुसार बतादे ब्रह्ममकल भारत के उत्तराखंड, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर तथा सिक्किम में पाया जाता है और भारत के बाहर नेपाल, म्यामार, भूटान, में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में कहे तो  पिण्डारी, रूपकुंड, हेमकुंड, फूलों की घाटी तथा केदारनाथ में पाया जाता है।






ब्रह्ममकल पुष्प से जुड़ी है अनेको मान्यताएं
मान्यता यह भी है कि माता पार्वती जी के अनुरूप पर श्री हरि ब्रह्म जी ने ब्रह्मकमल का निर्माण किया था भगवान् शिव ने जब गणेश जी के कटे हुए मस्तिष्क पर हाथी का सिर रखा तब उन्होंने ब्रह्मकमल से उनके मुंह में पानी छिड़का  था। इस की पुष्टि श्री पाताल भुवनेश्वर की गुफा से की जा सकती है यह गुफा उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित है और आज तक श्री गणेश जी के कटे हुए मस्तिष्क पर ब्रह्मकमल से पानी टपकता रहता है।

यही कारण है कि इसे देवताओं का जीवित बहल करने का दर्जा दिया गया हैं और ब्रह्मकमल का वर्णन रामायण काल में भी मिलता हैं। जब संजीवनी बूटी द्वारा लक्ष्मण जी को पुनः जीवित किया गया था। तब उत्सव में भगवान् ने स्वर्ग से फूल गिराएँ जिससे ब्रह्मकमल की उत्पत्ति हुई|

मान्यता यह भी है जब पांचो  पांडव द्रौपती के साथ जंगल में वनवास पर थे तब द्रौपती कौरवों द्वारा अपने अपमान को भूल नहीं पा रही थी साथ ही वन की यातनाये भी मानसिक कष्ट प्रदान कर रही थी तभी द्रौपती ने एक शाम सुनहरे कमल को खिलते देखा, तो सारे दुःख दर्द खुशी में परिवर्तित होने लगे तब द्रौपती ने भीम से उस सुनहरे फूल की खोज करने भेजा इस खोज के दौरान भीम की मुलाकात हनुमान जी से हुई थी| ब्रह्मकमल  माँ नंदा का भी प्रिय पुष्प हैं इसलिए इसे नंदा अष्टमी में तोड़ा जाता हैं|

मान्यता यह भी है की ब्रह्मकमल एक ऐसा फूल हैं जिसे जो कोई भी खिलते देखता हैं उसमे सकारात्मकता का संचार होता हैं ब्रह्मकमल फूल अगस्त के महीने में खिलता हैं सितम्बर, अक्टूबर में इसमे फल बनने लगते हैं  इसका जीवन पांच या छह माह का होता है|



ब्रह्ममकल पुष्प से जूडी है काफी औषधीय गुण
ब्रह्मकमल पुष्प से जूडी है काफी औषधीय गुण यह स्वाद में कड़वा होता है किंतु इसमें भरपूर मात्रा में औषधि तत्त्व होता है| यह पाचन दुरुस्त करता है तथा भूख बढ़ता है, बुखार के दूर करता है, STD रोग से दिलाता है राहत, मूत्र मार्ग के संक्रमण के इलाज में प्रयोग होता है, लीवर रोग से दिलाता है राहत, हड्डियों का दर्द चोट से भी दिलाता है राहत|



ब्रह्ममकल पुष्प आता है लुप्तप्राय पौधों की सूची में (Endangered Plants)
अपनी औषधीय गुणों तथा अत्यधिक शोषण और  जलवायु कारक में परिवर्तन की वजह से आज दिव्य पुष्प ब्रह्मकमल तथा ब्रह्मकमल की बहन जाति लुप्तप्राय पौधों की सूची में है| केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य (Kedarnath Wildlife Sanctuary), नंदादेवी बायोस्फीयर रिजर्व तथा अस्कोट वन्य जीव विहार (Askot Wildlife Sanctuary) ही तीन स्थान है जहाँ ब्रह्मकमल तथा ब्रह्मकमल की बहन जाति संरक्षित है|

लेखक – दीपक सिंह नेगी
Vibrant Uttarakhand

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14 टिप्पणियाँ

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  1. bahut jada achi jankari de gaye h is blog mai, thanks for sharing vibrant uttarakhand team. Loved to see koi hmre uttarakhand ko itna promote kr raha h ., keep rocking with ur post

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  2. nice blog vibrant uttarakhand apne jo jankri de h wo bahut kam dekhne ko milti h or bahut kam itna acha lekh likh pate h ajkal ., Headup to u and to ur team thanks share krne ke liye

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  3. You have explain all information very well and shared great knowledge with all of us....��❤️

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  4. nice blog, apne kafi kuch explain kra h bharma kamal ke bare mai nice , keep it up and keep providing us facts like above

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  5. bahut rochak tatya likhe h apne is bloh mai bahut acha laga dekh ke

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